सोमवार, 29 जून 2009

शिकायत्

ऐ खुदा मुझको तुझसे नहीं,
शिकायत् है तेरी खुदाई से
शिकायत् है इस जिन्‍दगी से
इसके हर ख्‍याल से ।

तेरी खुदाई की क्‍या मिसाल दूँ मैं
तेरे एहसानों में दबी जिन्‍दा लाश हूँ मैं
न कोई गम सताता है अब मुझे
न कोई ख्‍वाब हँसाता है अब मुझे ।

हैरान हूँ तो तेरी इस खुदाई पर ऐ खुदा
क्‍यूँ बनाता है तू एक दिल एक आदमी सदा
एक जिन्‍दगी हजार गम् दिए हैं
एक दिल जाने‍ कितने सवाल दिए हैं ।

हर आदमी ‍िफर भी तेरा तलबगार क्‍यूँ है ?
हर निगाह तेरे सजदे में बेकरार क्‍यूँ है ?
गर खुदा है तू दिखादे खुदाई मुझको
जिन्‍दगी न सही दिलादे रिहाई मुझको ।

सुधा पाठक

सोमवार, 26 जनवरी 2009

यूँ चला गया एक और गणतंञ दिवस । बड़ें उत्‍साह से सुबह 7 बजे परेड देखने निकला यह परिवार , दोपहर बाद थका सा चेहरा लेकर घर में दाखिल हुआ । अरे भई ..........इससे अच्‍छा तो घर पर टीवी के सामने बैठकर चाय पीते पीते परेड देख लेते । पति महोदय ने खिन्‍न मन से कहा । आशा के विपरीत पत्‍नी महोदया ने भी सहमति भरी । काश मैंने तुम्‍हारी बात मान ली होती । छुट्टी का पूरा दिन बेकार हो गया । 3 किलोमीटर पहले पार्किंग और पचास जगह चेकिंग बैठने की जगह भी मिला सबसे दूर वाले ब्‍लाक में । वहॉं तक आते आते तो परेड भी ढीली पड़ जाती है ।

उधर पिछले एक महीने से अपनी कमर सीधी न कर सक पाने वाले खाकी वर्दीधारियों ने भी ठीक ठाक आयोजन खत्‍म होने पर चैन की सॉंस ली एक ने अपनी टोपी झाड़कर सिर पर रखी और तड़ से घर फोन जड़ दिया । मुझे छुट्टी मिल गई है .......... कल शाम तक पहुँच जाऊँगा ।

इधर सड़कों पर जो बच्‍चे कल तक रेड लाइट पर कारों के आगे झण्‍डे बेचकर पैसे कमा रहे थे वो अब सड़क पर इधर उधर पड़े झण्‍डों को बीन रहे थे इन्‍हें बेचकर कुछ पैसे और मिल जाएंगे । इन बच्‍चों के लिए 26 जनवरी सिर्फ एक तारीख भर है जिस दिन ये झण्‍डे बेचकर थोड़ा ज्‍यादा कमा सकते हैं और किसी स्‍कूल के गेट के आगे खड़े होकर अपनी बारी पर मिठाई मिलने का इन्‍तजार कर सकते हैं ।

यही है हमारा गणतंञ दिवस मुझे तो गणतंञ दिवस आम और खास के बीच के अंतर को परिलक्षित करने वाला एक आयोजन भर लगता है

शेखर

स्‍लमडाग मिलनियेर
स्‍लमडाग मिलनियेर को अर्वाड पर अवार्ड मिल रहे हैं । पर मुझे लगता है कि फि‍ल्‍म भारतीय समाज की उस मानसिकता का दपर्ण है जिसमें स्‍लम में रहने वाला डाग होता है और वो कभी भी मिलिनेयर नहीं हो सकता । वरना एक स्‍लमडाग को पुलिस के पास अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अपनी जिन्‍दगी का चिट्ठा नहीं खोलना पड़ता ।‍ क्‍या अवार्ड के लिए हमें दुनिया को अपना यही चेहरा दिखाना होगा ?

26 जनवरी पर सभी ब्‍लागवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं । मेरे विचार में अभी भी हम गणतंत्र के सही मायने समझ नहीं पाए हैं और एक लम्‍बा रस्‍ता अभी तय करना बाकी है

रविवार, 25 जनवरी 2009

तूलिका में आपका स्‍वागत है तूलिका के माध्‍यम से मेरा प्रयास रहेगा कि मैं अपने विचारों को आपके साथ बॉंट सकूँ । मैं धन्‍यवाद देना चाहूँगा अतुल जी का जो ब्‍लागिंग के लिए मेरे प्रेरणास्‍ञोत हैं । उनकी सुन्‍दर कविताएं आप duniagoal.blogspot.com पर पढ़ सकते हैं ।

सहयोगाकांक्षी

शेखर