ऐ खुदा मुझको तुझसे नहीं,
शिकायत् है तेरी खुदाई से
शिकायत् है इस जिन्दगी से
इसके हर ख्याल से ।
तेरी खुदाई की क्या मिसाल दूँ मैं
तेरे एहसानों में दबी जिन्दा लाश हूँ मैं
न कोई गम सताता है अब मुझे
न कोई ख्वाब हँसाता है अब मुझे ।
हैरान हूँ तो तेरी इस खुदाई पर ऐ खुदा
क्यूँ बनाता है तू एक दिल एक आदमी सदा
एक जिन्दगी हजार गम् दिए हैं
एक दिल जाने कितने सवाल दिए हैं ।
हर आदमी िफर भी तेरा तलबगार क्यूँ है ?
हर निगाह तेरे सजदे में बेकरार क्यूँ है ?
गर खुदा है तू दिखादे खुदाई मुझको
जिन्दगी न सही दिलादे रिहाई मुझको ।
सुधा पाठक
सोमवार, 29 जून 2009
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